वीरों को जन्म देने वाली इस भारत भूमि की गाथा कौन नही जानता , इसने हमेशा ऐसे ऐसे वीर राजाओं और योद्धाओं को जन्म दिया है जिन्होंने इस मिटटी की आन बान और शान के लिए ना केवल अपना पूरा जीवन कुर्बान किया बल्कि भारत विरोधियों के लिए भी हमेशा काल के रूप बनकर रहे |
भारत शेरों की तपोस्थली रही है यहाँ एक से बढ़कर एक वीरों ने जन्म लिया है। भारतीय रणबाकुरों ने वीरता के अदम्य साहस के ऐसे ऐसे उदाहरण पेश किये कि जिनको देखकर दुश्मनों ने दांतों तले उगुलियाँ दबा ली। आज हम आपको एक ऐसे ही एक महान योद्धा के विषय में जानकारी दे जिसने अपनी तलवार की धार से वीरता के नए आयाम स्थापित किये थे।
वीर योद्धा “सरदार हरि सिंह नलवा” के इतिहास के महत्वपूर्ण परिचय….
सरदार हरि सिंह (1791-1837), महाराजा रणजीत सिंह के सेनाध्यक्ष थे जिसने पठानों से साथ कई लड़ाईयों का नेतृत्व किया। सिख फौज के सबसे बड़े जनरल हरि सिंह नलवा ने कश्मीर पर विजय प्राप्त कर अपना लौहा मनवाया। यही नहीं, काबुल पर भी सेना चढ़ाकर जीत दर्ज की।
खैबर दर्रे से होने वाले अफ़ग़ान आक्रमणों से देश को मुक्त किया। 1837 में जमरौद की जंग में लड़ते हुए मारे गए। नोशेरा के युद्ध में स. हरि सिंह नलवा ने महाराजा रणजीत सिंह की सेना का कुशल नेतृत्व किया था। रणनीति और रणकौशल की दृष्टि से हरि सिंह नलवा की तुलना भारत के श्रेष्ठ सेनानायकों से की जा सकती है।
सरदार हरि सिंह नलवा का इतिहास
राजा रणजीत सिंह ने सरदार हरि सिंह नलवा के जैसे शौर्य पराक्रम और कुशल सेना नायक के बल बूते पर मुगल साम्राज्य के बीच उस भाग में अपने स्वतंत्र साम्राज्य की स्थापना की जहाँ पर विदेशी आक्रमणकारियों जब तब हमला करते रहते थे |
अपने जीवनकाल में सरदार हरि सिंह नलवा इन क्रूर कबिलियों के लिए दुस्वप्न की तरह रहे जिन्होंने कभी भी विदेशी आक्रमणकारियों को चैन की सांस नहीं लेने दिया। खैबर दर्रे से होने वाले अफ़ग़ान आक्रमणों से देश को मुक्त कराने में सरदार हरिसिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अफगानों के खिलाफ हुयी भीषण लड़ाई को जीतकर नलवा ने अफ़गानों की धरती पर कसूर, मुल्तान, कश्मीर और पेशावर में सिख शासन की स्थापना की थी । पेशावर से लेकर काबुल तक सरदार हरी सिंह नलवा की कीर्ति पताका फैली हुयी थी।
हरी सिंह नलवा
सिक्खों के सर्वाधिक लोकप्रिय सरदारों की गिनती में शुमार सरदार हरिसिंह नलवा ने सियालकोट (1802), कसूर (1807), मुल्तान (1818), कश्मीर (1819), पखली और दमतौर (1821-2), पेशावर (1834) और ख़ैबर हिल्स में जमरौद (1836) पर विजय प्राप्त कर सिक्ख साम्राज्य का विस्तार किया।
एक समय राजा रणजीत सिंह के राज्य को छोड़कर पूरे भारत पर ब्रिटिश हुकुमत का राज्य था। सरदार हरि सिंह नलवा, अकाली बाबा फूला सिंह, फतेह सिंह आहलुवालिया, देसा सिंह मजीठिया और अत्तर सिंह सन्धावालिये जैसे योद्धाओं के चलते राजा रणजीत सिंह स्वतंत्रता पूर्वक अपना राज-काज चलाते रहे।
महाराजा रणजीत सिंह ने सरदार हरि सिंह नलवा को खैबर दर्रे से राज्य में प्रवेश करने वाली विदेशी शक्तियों को रोकने के उद्देश्य से, दर्रे के प्रवेश द्वार पर किले का निर्माण करने का आदेश दिया था। हरि सिंह नलवा के तहत अटक से खैबर दर्रा तक किलों की एक श्रृंखला का निर्माण हुआ, उसमें मशहूर जमरौद का किला भी शामिल था।
वीरगति को प्राप्त करना ( हरी सिंह जी की मृत्यु )
1837 को एक युद्ध में हरी सिंह नलवा लड़ते लड़ते वीर गति को प्राप्त हुए ये युद्ध जमरूद में हुआ था , जिसमे हरी सिंह नलवा को 2 गोली लगी थी पर बड़ी बात ये थी कि अपनी सहादत के बावजूद उन्होंने पेशावर को अपने हाथ से जाने नही दिया था।
ऐसे वीर थे बहादुर सरदार हरी सिंह नलवा जी हम उनको कोटि कोटि नमन करते हैं और आपसे आग्रह करते हैं कि ये कहानियां अपने बच्चों को जरुर सुनाएँ , ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और याद रखें हिन्दुओं का इतिहास वीरता से भरा पड़ा है और सदेव हर हिन्दू को इस पर गर्व करना चाहिए.