गौड़ राजपूतों का इतिहास | जय माँ भवानी हुकुम ,आपका एक बार फिर से हमारे आर्टिकल में स्वागत है। हम अपनी पिछली पोस्ट में राजपूत समाज के विभिन्न वंशों के विषय में महत्वपूर्ण तथ्यों पर चर्चा कर रहे थे।
आज हम उसी कड़ी को एक बार फिर से आगे बढ़ाते हैं आज हम राजपूत समाज के एक और वंश गौड़ वंश के विषय में आपके साथ संशिप्त रूप से चर्चा करेंगे। गौड़ वंश का इतिहास काफी पुराना है जिसके बारे कई रोचक तथ्य आपको हमारी आज की पोस्ट में पढ़ने को मिलेंगे हमने गौड़ समाज के विषय पर उपलब्ध विभिन्न लेखों के आधार पर अपनी आज की पोस्ट लिखी है। उसी को ध्यान में रखते हुए हम गौड़ राजपूतों का इतिहास के साथ साथ अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के ऊपर भी चर्चा करेंगे।
क्षत्रिय गौड़ राजपूतों का इतिहास और उससे जुड़ी रोचक और इतिहास की बातें इस प्रकार हे :-
(1). गौड़ क्षत्रिय भगवान श्रीराम के छोटे भाई भरत के वंशज हैं। ये विशुद्ध सूर्यवंशी कुल के हैं। जब श्रीराम अयोध्या के सम्राट बने तब महाराज भरत को गंधार प्रदेश का स्वामी बनाया गया। महाराज भरत के दो बेटे हुये तक्ष एवं पुष्कल जिन्होंने क्रमशः प्रसिद्द नगरी तक्षशिला (सुप्रसिद्ध विश्वविधालय) एवं पुष्कलावती बसाई (जो अब पेशावर है)। एक किंवदंती के अनुसार गंधार का अपभ्रंश गौर हो गया जो आगे चलकर राजस्थान में स्थानीय भाषा के प्रभाव में आकर गौड़ हो गया। गौड़ राजपूतों का इतिहास
(2). गंधार प्रदेश में शासन करने वाले गौड़ वंश में भी काफी महान सम्राट हुए जिन्होंने गौड़ वंश को अन्य क्षेत्रों में फैला दिया। इन महान सम्राटों ने कंधार प्रदेश की सीमा को बढ़ाते हुए राजस्थान तक पहुँचा दिया। आज भी राजस्थान में गौड़ राजपूतों की काफी अच्छी संख्या है।
(3). महाभारत काल में इस वंश का राजा जयद्रथ था। कालांतर में सिंहद्वित्य तथा लक्ष्मनाद्वित्य दो प्रतापी राजा हुये जिन्होंने अपना राज्य गंधार से राजस्थान तथा कुरुक्षेत्र तक विस्तृत कर लिया था। पूज्य गोपीचंद जो सम्राट विक्रमादित्य तथा भृतहरि के भांजे थे इसी वंश के थे। बाद में इस वंश के क्षत्रिय बंगाल चले गए जिसे गौड़ बंगाल कहा जाने लगा। आज भी गौड़ राजपूतों की कुल देवी महाकाली का प्राचीनतम मंदिर बंगाल में है जो अब बंगलादेश में चला गया है।
(4). बंगाल के गौड़ शासकों के अलावा राजस्थान में भी गौड़ वंश की एक अच्छी खासी जनसंख्या है। राजस्थान को गौड़ों के प्राचीन स्थलों के तौर पर देखा जाता है। यहां पर पुराने समय से ही गौड़ वंश के लोग निवास कर रहे हैं। राजस्थान में जिस क्षेत्र को गौड़ वंश के लोग अच्छा खासा प्रभावित करते है उसे गौड़बाड़ क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। बंगाल से आकर मारवाड़ क्षेत्र में बसने बाले सर्वप्रथम सीताराम गौड़ थे।
गौड़ राजपूतों का इतिहास | Goud Rajput History in Hindi
(5). बंगाल में गौड़ राजपूतों का लम्बे समय तक शासन रहा। चीनी यात्री ह्वेन्शांग के अनुसार शशांक गौड़ की राजधानी कर्ण-सुवर्ण थी जो वर्तमान में झारखण्ड के सिंहभूमि के अंतर्गत आता है। इससे पता चलता है कि गौड़ साम्राज्य बंगाल (वर्तमान बंगलादेश समेत) कामरूप (असाम) झारखण्ड सहित मगध तक विस्तृत था। गौड़ वंश के प्रभाव के कारण ही इस क्षेत्र को गौड़ बंगाल कहा जाने लगा । गौड़ राजपूतों का इतिहास
(6). महान राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान भी गौड़ वंश के नेतृत्व से खासे प्रभावित थे जिस बजह से उन्होंने अपने दरबार में गौड़ वंशियों को उच्च पद प्रदान किये थे। रण सिंह गौड़ उनके दरबार का हमेशा अहम हिस्सा रहे इसके अलावा बुलंदशहर के राजा रणवीर सिंह गौड़ से भी पृथ्वीराज चौहान के काफी अच्छे संबंध थे। प्रथ्वीराज चौहान की जीवनी में भी गौड़ वंशियों की काफी तारीफ की गयी है।
(7). गौड़ राजपूत वंश की कई उपशाखाएँ (खापें) है जैसे- अजमेरा गौड़, मारोठिया गौड़, बलभद्रोत गौड़, ब्रह्म गौड़, चमर गौड़, भट्ट गौड़, गौड़हर, वैद्य गौड़, सुकेत गौड़, पिपारिया गौड़, अभेराजोत, किशनावत, चतुर्भुजोत, पथुमनोत, विबलोत, भाकरसिंहोत, भातसिंहोत, मनहरद सोत, मुरारीदासोत, लवणावत, विनयरावोत, उटाहिर, उनाय, कथेरिया, केलवाणा, खगसेनी, जरैया, तूर, दूसेना, घोराणा, उदयदासोत, नागमली, अजीतमली, बोदाना, सिलहाला आदि खापें है जो उनके निकास स्थल व पूर्वजों के नाम से प्रचलित है। गौड़ राजपूतों का इतिहास
गौड़ राजपूत का इतिहास
(8). मध्यप्रदेश में शेओपुर (जिला जबलपुर) गौड़ राजपूतों का एक प्रमुख ठिकाना रहा है। 1301 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने शेओपुर पर कब्जा किया जो तब तक हमीर देव चैहान के पास था। बाद में मालवा के सुलतान का तथा शेरशाह सूरी का भी यहाँ कब्जा रहा। उसके बाद बूंदी के शासक सुरजन सिंह हाडा ने भी शेओपुर पर कब्जा किया। बाद में अकबर ने इसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया। स्वतंत्र रूप से इस राज्य की स्थापना विट्ठलदास गौड़ के पुत्र अनिरुद्ध सिंह गौड़ ने की थी। इनके आमेर का कछवाहा राजपूतों से काफी निकट के और घनिष्ट सम्बन्ध रहे। अनिरुद्ध सिंह गौड़ की पुत्री का विवाह आमेर नरेश मिर्जा राजा रामसिंह से हुआ था। सवाई राजा जयसिंह का विवाह उदयसिंह गौड़ की पुत्री आनंदकंवर से हुआ था। जिससे ज्येष्ठ पुत्र शिवसिंह पैदा हुआ। गौड़ राजपूतों का इतिहास
(9). शेओपुर के अलावा खांडवा भी मध्यप्रदेश में गौडों का एक प्रमुख ठिकाना रहा है। अजमेर साम्राज्य के सामंत राजा वत्सराज (बच्छराज) गौड़ (केकड़ी-जूनियां) के वंशज गजसिंह गौड़ और उनके भाइयों ने राजस्थान से हटकर 1485 में पूर्व निमाड़ (खांडवा) में घाटाखेड़ी नमक राज्य स्थापित किया। यह गौड़ राजपूतों का एक मजबूत ठिकाना रहा। वर्तमान में खांडवा के मोहनपुर, गोरड़िया पोखर राजपुरा प्लासी आदि गाँवों में उपरोक्त ठिकाने के वंशज बसे हुये हैं।
(10). गौड़ वंश के शासकों की गिनती एक तेज तर्रार दिमाग वाले व्यक्ति एवं एक कुशल घुड़सवार के तौर पर की जाती है। गौड़ वंश की वीरता से प्रभावित होकर बहुत से शासकों ने अपने दरबार में गौड़ वंशियों को ऊँचे पद प्रदान किये । इतिहास गवाह है कि गौड़ों के नेतृत्व के बल पर कई शासक कामयाबी के शिखर तक पहुँचे थे।
नोट – गौड़ राजपूतों का इतिहास की जानकारी काफी विस्तृत है हमने अपने इस पोस्ट में मुख्य पहलुओं पर ही जानकारी दी है।फिर भी कोई महत्वपूर्ण जानकारी छूट गयी है तो हम उसके लिए क्षमाप्रार्थी हैं।