दुर्गादास राठौड़ का इतिहास। मारवाड़ रियासत का वह योद्धा जिसने अपने भाले की नोक से मुग़ल सल्तनत की नींव हिला दी थी। जिन्होंने अपने कौशल और राजनितिक समझ से औरंगजेब के चंगुल से मारवाड़ की रियासत और राजघराने को बचाया था। Veer Durgadas Rathore History in Hindi इस लेख में आज आपको मारवाड़ की धरती पर जन्मे वीर दुर्गादास राठौड़ के साहस, पराक्रम और उनके राष्ट्रप्रेम की गौरवशाली गाथा बताने जा रहे हैं, जिनके बलिदान और वीरता को समस्त भारत और मारवाड़ रियासत कभी भी भुला नहीं सकता हैं ।
वीर दुर्गादास राठौड़ का इतिहास और जीवन परिचय| History of Veer Durgadas Rathore in Hindi
वीर दुर्गादास राठौड़ मारवाड़ रियासत अभिन्न अंग माने जाते हैं । कहते हैं की औरंगजेब से हिन्दुत्व और अपने राष्ट्र की रक्षा हेतु उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन घोड़े की पीठ पर बिताया था, उनके विषय में कुछ पंक्तियां प्रचलित है जो इस प्रकार है:-
आठ पहर चौसठ घड़ी, घुड़ले ऊपर वास ।
सेल अणी सु सेकतो, बाटी दुर्गादास ।।
वीर दुर्गादास राठौड़ जीवन परिचय | |
नाम | वीर दुर्गादास राठौड़ |
पिता का नाम | श्री आसकरण जी राठौड़ |
माता का नाम | नेतकँवर जी |
जन्म | 13 अगस्त 1638 ( विक्रम संवत 1695 श्रावण शुक्ल चतुर्दशी ) |
जन्म स्थान | सालवा , जोधपुर |
कौन थे | मारवाड़ रियासत में महाराजा जसवंतसिंह जी के सेनापति थे। |
उपलब्धि | औरंगजेब के सम्पूर्ण इस्लामिक भारत का सपना मिटा दिया और जोधपुर को मुग़ल चंगुल से छुड़ाकर अजीतसिंह जी को जोधपुर का राजा घोषित कर दिया। |
मृत्यु | 22 नवंबर 1718 को शिप्रा नदी के तट पर उज्जैन में |
दुर्गादास राठौड़ का जन्म मारवाड़ रियासत के मंत्री आसकरण जी करनोत राठौड़ और नेतकंवर के घर 13 अगस्त 1638 ( विक्रम संवत 1695 श्रावण शुक्ल पक्ष चतुर्दशी ) को सालवा गांव में हुआ था जो जोधपुर में स्थित हैं । Durgadas Rathore बचपन से निडर और पराक्रमी योद्धा थे । उनके पालन-पोषण में शुरू से ही राष्ट्रप्रेम और अपने क्षत्रिय धर्म के प्रति अडिग रहने के संस्कार डाले गए थे।
बाबा वीर दुर्गादास राठौड़ की वीरगाथा | Veer Durgadas Rathore Biography in Hindi
आसकरण जी मारवाड़ राज्य की सेना में जोधपुर नरेश महाराजा जसवंत सिंह जी की सेवा में थे ।अपने पिता की भांति बालक दुर्गादास में भी वीरता कूट कूट कर भरी थी,एक बार जोधपुर राज्य की सेना के ऊंटों को चराते हुए राईके (ऊंटों के चरवाहे) आसकरण जी के खेतों में घुस गए, बालक दुर्गादास के विरोध करने पर भी चरवाहों ने कोई ध्यान नहीं दिया तो वीर युवा दुर्गादास का खून खोल उठा और तलवार निकाल कर झट से ऊंट की गर्दन उड़ा दी।
इसकी खबर जब महाराज जसवंत सिंह जी के पास पहुंची तो वे उस वीर बालक को देखने के लिए उतावले हो उठे व अपने सेनिकों को दुर्गादास को लेन का हुक्म दिया ।अपने दरबार में महाराज उस वीर बालक की निडरता व निर्भीकता देख अचंभित रह गए,आस्करण जी ने अपने पुत्र को इतना बड़ा अपराध निर्भीकता से स्वीकारते देखा तो वे सकपका गए।
परिचय पूछने पर महाराज को मालूम हुवा की यह आस्करण जी का पुत्र है,तो महाराज ने दुर्गादास को अपने पास बुला कर पीठ थपथपाई और इनाम तलवार भेंट कर अपनी सेना में भर्ती कर लिया।उस समय महाराजा जसवंत सिंह जी दिल्ली के मुग़ल बादशाह औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति थे।
फिर भी औरंगजेब की नियत जोधपुर राज्य के लिए अच्छी नहीं थी और वह हमेशा जोधपुर हड़पने के लिए मौके की तलाश में रहता था ।सं. 1731 में गुजरात में मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह को दबाने हेतु जसवंत सिंह जी को भेजा गया,इस विद्रोह को दबाने के बाद महाराजा जसवंत सिंह जी काबुल में पठानों के विद्रोह को दबाने हेतु चल दिए और दुर्गादास की सहायता से पठानों का विद्रोह शांत करने के साथ ही वीर गति को प्राप्त हो गए ।
मारवाड़ के रक्षक वीर दुर्गादास राठौड़ | Durgadas Rathore Jiwan Parichay
उस समय उनके कोई पुत्र नहीं था और उनकी दोनों रानियाँ गर्भवती थी,दोनों ने एक एक पुत्र को जनम दिया,एक पुत्र की रास्ते में ही मौत हो गयी और दुसरे पुत्र अजित सिंह को रास्ते का कांटा समझ कर ओरंग्जेब ने अजित सिंह की हत्या की ठान ली,ओरंग्जेब की इस कुनियत को स्वामी भक्त दुर्गादास राठौड़ ने भांप लिया और मुकंदास की सहायता से स्वांग रचाकर अजित सिंह को दिल्ली से निकाल लाये व अजित सिंह की लालन पालन की समुचित व्यवस्था करने के साथ जोधपुर में गदी के लिए होने वाले ओरंग्जेब संचालित षड्यंत्रों के खिलाफ लोहा लेते अपने कर्तव्य पथ पर बदते रहे।
दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु
अजित सिंह के बड़े होने के बाद गद्दी पर बैठाने तक वीर दुर्गादास राठौड़ को जोधपुर राज्य की एकता व स्वतंत्रता के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ी,ओरंग्जेब का बल व लालच दुर्गादास को नहीं डिगा सका जोधपुर की आजादी के लिए दुर्गादास ने कोई पच्चीस सालों तक सघर्ष किया,लेकिन जीवन के अन्तिम दिनों में दुर्गादास को मारवाड़ छोड़ना पड़ा ।
महाराज अजित सिंह के कुछ लोगों ने दुर्गादास राठौड़ के खिलाफ कान भर दिए थे जिससे महाराज दुर्गादास से अनमने रहने लगे वस्तु स्तिथि को भांप कर दुर्गादास ने मारवाड़ राज्य छोड़ना ही उचित समझा ।और वे मारवाड़ छोड़ कर उज्जेन चले गए वही शिप्रा नदी के किनारे उन्होने अपने जीवन के अन्तिम दिन गुजारे व वहीं उनका स्वर्गवास हुवा ।
दुर्गादास राठौड़ हमारी आने वाली पिडियों के लिए वीरता, देशप्रेम, बलिदान व स्वामिभक्ति के प्रेरणा व आदर्श बने रहेंगे ।१-मायाड ऐडा पुत जाण, जेड़ा दुर्गादास । भार मुंडासा धामियो, बिन थम्ब आकाश । २-घर घोड़ों, खग कामनी, हियो हाथ निज मीत सेलां बाटी सेकणी, श्याम धरम रण नीत ।वीर दुर्गादास का निधन 22 नवम्बर, सन् 1718 में हुवा था इनका अन्तिम संस्कार शिप्रा नदी के तट पर किया गया था ।
देशभक्त दुर्गादास राठौड़
“उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुग़ल शक्ति उनके दृढ हृदये को पीछे हटा सकी। वह एक वीर था जिसमे राजपूती साहस व मुग़ल मंत्री सी कूटनीति थी “जिसने इस देश का पूर्ण इस्लामीकरण करने की औरंगजेब की साजिश को विफल कर हिन्दू धर्म की रक्षा की थी…..उस महान यौद्धा का नाम है वीर दुर्गादास राठौड़…
इसी वीर दुर्गादास राठौड़ के बारे में रामा जाट ने कहा था कि “धम्मक धम्मक ढोल बाजे दे दे ठोर नगारां की,, जो आसे के घर दुर्गा नहीं होतो,सुन्नत हो जाती सारां की…….आज भी मारवाड़ के गाँवों में लोग वीर दुर्गादास राठौड़ को याद करते है कि“माई ऐहा पूत जण जेहा दुर्गादास, बांध मरुधरा राखियो बिन खंभा आकाश”हिंदुत्व की रक्षा के लिए उनका स्वयं का कथन”रुक बल एण हिन्दू धर्म राखियों”अर्थात हिन्दू धर्म की रक्षा मैंने भाले की नोक से की…………
इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होने सारी उम्र घोड़े की पीठ पर बैठकर बिता दी।अपनी कूटनीति से इन्होने ओरंगजेब के पुत्र अकबर को अपनी और मिलाकर,राजपूताने और महाराष्ट्र की सभी हिन्दू शक्तियों को जोडकर ओरंगजेब की रातो की नींद छीन ली थी।और हिंदुत्व की रक्षा की थी।
उनके बारे में इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने कहा था कि …..”उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुगलों की शक्ति उनके दृढ निश्चय को पीछे हटा सकी,बल्कि वो ऐसा वीर था जिसमे राजपूती साहस और कूटनीति मिश्रित थी”.ये निर्विवाद सत्य है कि अगर उस दौर में वीर दुर्गादास राठौड़,छत्रपति शिवाजी,वीर गोकुल,गुरु गोविन्द सिंह,बंदा सिंह बहादुर जैसे शूरवीर पैदा नहीं होते तो पुरे मध्य एशिया,ईरान की तरह भारत का पूर्ण इस्लामीकरण हो जाता और हिन्दू धर्म का नामोनिशान ही मिट जाता…………
Story of Veer Durgadas Rathore in Hindi
28 नवम्बर 1678 को अफगानिस्तान के जमरूद नामक सैनिक ठिकाने पर जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह का निधन हो गया था उनके निधन के समय उनके साथ रह रही दो रानियाँ गर्भवती थी इसलिए वीर शिरोमणि दुर्गादास सहित जोधपुर राज्य के अन्य सरदारों ने इन रानियों को महाराजा के पार्थिव शरीर के साथ सती होने से रोक लिया |
और इन गर्भवती रानियों को सैनिक चौकी से लाहौर ले आया गया जहाँ इन दोनों रानियों ने 19 फरवरी 1679 को एक एक पुत्र को जन्म दिया,बड़े राजकुमार नाम अजीतसिंह व छोटे का दलथंभन रखा गयाये वही वीर दुर्गादास राठौड़ जो जोधपुर के महाराजा को औरंगज़ेब के चुंगल ले निकल कर लाये थे।
जब जोधपुर महाराजा अजित सिंह गर्भ में थे उनके पिता की मुर्त्यु हो चुकी थी तब औरंगज़ेब उन्हें अपने संरक्षण में दिल्ली दरबार ले गया था उस वक़्त वीर दुर्गादास राठौड़ चार सो चुने हुए राजपूत वीरो को लेकर दिल्ली गए और युद्ध में मुगलो को चकमा देकर महाराजा को मारवाड़ ले आये…..
उसी समय बलुन्दा के मोहकमसिंह मेड़तिया की रानी बाघेली भी अपनी नवजात शिशु राजकुमारी के साथ दिल्ली में मौजूद थी वह एक छोटे सैनिक दल से हरिद्वार की यात्रा से आते समय दिल्ली में ठहरी हुई थी | उसने राजकुमार अजीतसिंह को बचाने के लिए राजकुमार को अपनी राजकुमारी से बदल लिया और राजकुमार को राजकुमारी के कपड़ों में छिपाकर खिंची मुकंददास व कुंवर हरीसिंह के साथ दिल्ली से निकालकर बलुन्दा ले आई |
यह कार्य इतने गोपनीय तरीके से किया गया कि रानी ,दुर्गादास,ठाकुर मोहकम सिंह,खिंची मुकंदास,कु.हरिसिघ के अलावा किसी को कानों कान भनक तक नहीं लगी यही नहीं रानी ने अपनी दासियों तक को इसकी भनक नहीं लगने दी कि राजकुमारी के वेशभूषा में जोधपुर के राजकुमार अजीतसिंह का लालन पालन हो रहा है |
छ:माह तक रानी राजकुमार को खुद ही अपना दूध पिलाती,नहलाती व कपडे पहनाती ताकि किसी को पता न चले पर एक दिन राजकुमार को कपड़े पहनाते एक दासी ने देख लिया और उसने यह बात दूसरी रानियों को बता दी।
अत: अब बलुन्दा का किला राजकुमार की सुरक्षा के लिए उचित न जानकार रानी बाघेली ने मायके जाने का बहाना कर खिंची मुक्न्दास व कु.हरिसिंह की सहायता से राजकुमार को लेकर सिरोही के कालिंद्री गाँव में अपने एक परिचित व निष्टावान जयदेव नामक पुष्करणा ब्रह्मण के घर ले आई व राजकुमार को लालन-पालन के लिए उसे सौंपा जहाँ उसकी (जयदेव)की पत्नी ने अपना दूध पिलाकर जोधपुर के उतराधिकारी राजकुमार को बड़ा किया |
((वीर दुर्गादास राठौड़ के सिक्के और पोस्ट स्टाम्प भारत सरकार पहले ही जारी कर चुकी है ))जय हिन्द,जय राजपूताना ………….
निष्कर्ष : वीर दुर्गादास राठौड़ के विषय में क्या जाना
वीर दुर्गादास राठौड़ का इतिहास इस लेख में हमने आज Durgadas Rathore जी के जीवन पर प्रकाश डाला हैं । हमारी वेबसाइट अभिज्ञान दर्पण पर ऐसे ही ऐतिहासिक और रोचक तथ्यों से भरपूर लेख प्रकाशित करते रहते हैं, इसलिए आप हमे अन्य सोशल मीडिया पर भी Follow करते रहे । ताकि नए लेख आपको प्राप्त हो सके ।
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FAQ’s : दुर्गादास राठौड़ से जुड़े सवाल-जवाब
दुर्गादास राठौड़ की छतरी कौनसे राज्य में बनी है?
वैसे तो दुर्गादास राठौड़ जी की छतरी कई जगह बनी हैं , किन्तु शिप्रा नदी के किनारे पर उनकी मृत्यु हुई थी। वही पर दुर्गादास राठौड़ की छतरी उज्जैन में बनी हुई है।
वीर दुर्गादास राठौड़ के घोड़े का नाम क्या था?
प्राप्त जानकारी के अनुसार दुर्गादास जी जिस घोड़े पर सवारी करते थे उसका नाम “अर्बुद” था। उन्होंने इस घोड़े का नाम राजस्थान के आबू पर्वत के नाम पर रखा था।
वीर दुर्गादास राठौड़ जयंती कब आती है?
दुर्गादास राठौड़ जी की जयंती प्रतिवर्ष 13 अगस्त को आती है।
औरंगजेब को किसने हराया था?
मारवाड़ के वीर दुर्गादास राठौड़ ने मुग़ल बादशाह से जोधपुर का राज्य वापस छीन लिया था। उन्होंने औरंगजेब की हिंदुत्व को मिटाने की शाजिस को मिट्टी में मिला दिया था।