सिंधु घाटी सभ्यता ( Indus Valley Civilization ) विश्व के आरम्भिक इतिहास में मानव के विकास के स्तर को बया करती यह सभ्यता सबसे प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक सभ्यता है। इस सभ्यता को हम हड़प्पा या सिंघु-सरस्वती सभ्यता जैसे नामों से जानते है। भारत का इतिहास बहुत ही प्रगतिशील और समृद्ध रहा है। सिंधु घाटी सभ्यता का विकास मूल रूप से सिंधु नदी और घघ्घर/हकड़ा यानि प्राचीन सरस्वती नदी के किनारे हुवा था। एक शोध के अनुसार यह सभ्यता तक़रीबन 8000 वर्ष पुरानी है।
करीब 100 वर्ष पहले इस सभ्यता की खोज हुई थी। सिंधु घाटी सभ्यता पूर्ण रूप से विकसित सभ्यताओं में अग्रणी मानी जाती है। आज हम इस लेख में आपको इसी सभ्यता के विषय में विस्तार से वर्णन करेंगे।
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज
जैसे की हमने ऊपर बताया है, करीब 100 वर्ष पहले 1921 में इस महान सिंधु घाटी सभ्यता की खोज हुई थी, इस सभ्यता की खोज का श्रेय रायबहादुर दयाराम साहनी को मिलता है, उस वक्त के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक थे सर जॉन मार्शल उनके सम्पूर्ण निर्देशन में ही यह खुदाई का कार्य सम्पूर्ण किया गया था।
इसके बाद सं 1922 में पाकिस्तान में स्थित लरकाना जिले में मोहनजोदाड़ो में एक बौद्ध स्तूप की खुदाई चल रही थी, तब खुदाई करते समय एक और स्थान की खोज हुई जो इस सभ्यता से मिल रहा था, इस खोज के बाद सभी को यह लगने लगा था की यह सभ्यता सम्भवतः सिंधु नदी के आस-पास ही बसी हुई थी, इसलिए इस सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता यानि Indus Valley Civilization के नाम से पुकारा जाने लगा।
इसके बाद इतिहासकारो और पुरातत्व जानकारों में इस सभ्यता के विषय में जानने की हौड़ सी लग गई थी, इसीलिए सं 1927 में हड़प्पा स्थान पर खुदाई शुरू की गई यहाँ नतीजे अच्छे निकले और सभ्यता के और अवशेष प्राप्त हुवे इसके बाद इसको “हड्डपा की सभ्यता” के नाम से जाना जाने लगा।
सिंधु सभ्यता का विस्तार ( Indus Valley Civilization )
इस पौराणिक सभ्यता का विस्तार कई सैकड़ो किलोमीटर तक फैला है, मुख्य रूप से सिंधु घाटी सभ्यता का क्रेंद पंजाब और सिंध तक था, किन्तु इसके अवशेष पाकिस्तान से लेकर भारत के पंजाब, गुजरात, राजस्थान, सिंघ, बलूचिस्तान और हरियाणा एवं जम्मू-कश्मीर से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक पाए गए है, और अधिक विस्तार से समझे तो यह सभ्यता उत्तर में जम्मू के ‘मांडा’ के रावी नदी के तट से आरम्भ होकर दक्षिण में दक्षिण में नर्मदा के मुहाने भगतराव तक फैली है, एवं पश्चिम में देखे तो यह सभ्यता बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट के सुत्कागेनडोर से लेकर उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले तक फैली है।
शुरुवात में जो अवशेष प्राप्त हुवे थे उसमें सम्पूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार था। इसका क्षेत्रफल 20,00000 वर्ग किलोमीटर था। इस तरह यह क्षेत्र आधुनिक पाकिस्तान से तो बड़ा है ही, प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया से भी बड़ा है। सिन्धु घाटी सभ्यता का विस्तार का पूर्व से पश्चिमी तक लगभग 1600Km तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400Km था।
इस प्रकार सिंधु सभ्यता समकालीन मिस्र या सुमेरियन सभ्यता से अधिक विस्तृत क्षेत्र में फैली थी। ईसा पूर्व तीसरी और दूसरी सहस्त्राब्दी में संसार भर में किसी भी सभ्यता का क्षेत्र हड़प्पा संस्कृति से बड़ा नहीं था। अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस संस्कृति के कुल 1500 स्थलों का पता चल चुका है। इनमें से कुछ आरंभिक अवस्था के हैं तो कुछ परिपक्व अवस्था के और कुछ उत्तरवर्ती अवस्था के थे।
सिंधु घाटी सभ्यता नगर निर्माण योजना
यह सभ्यता मूल रूप से एक नगरीय सभ्यता ही थी, जो नदियों के मुहानों पर बसी हुई थी। सिंधु घाटी सभ्यता के निवासी एक उन्नत निर्माणकर्ता थे। उन्होंने सुनियोजित तरीकों से अपने नगरों का निर्माण किया था, जिसमे उच्य कोटि के भवन निर्माण, अनाज रखने हेतु भण्डार गृह, सार्वजानिक एवं निजी शौचालय, जलाशय, रक्षा प्राचीरों का निर्माण, शहरों में चौरस सड़को का निर्माण एवं पानी के निकास हेतु नालियों का निर्माण भी करवाया था। सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख नगर इस प्रकार है :-
- मोहनजोदड़ो : जिसका सिंधी भाषा में आशय मृतको का टीला होता है, सिंध प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित सैन्धव सभ्यता का महत्वपूर्ण स्थल है। यहाँ से वृहत स्न्नानागार, अन्नागार के अवशेष, पुरोहित कि मूर्ती इत्यादि मिले है।
- हड़प्पा : यह पहला स्थान था, जहाँ से सैन्धव सभ्यता के सम्बन्ध में प्रथम जानकारी मिली।यह पाकिस्तान में पश्चिमी पंजाब प्रान्त के मांटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। अर्ध-औद्योगिक नगर’ कहा है।
- चन्हूदड़ो : यह सैन्धव नगर मोहनजोदड़ो से किलोमीटर दक्षिण में सिंध प्रान्त में ही स्थित था। इसकी खोज 1934 ई० में ऐन, जी, मजूमदार ने की तथा 1935 में मैके द्धारा यहाँ उत्खनन कराया गया। यहाँ के मनके बनाने का कारखाना, बटखरे।तथा कुछ उच्च कोटि की मुहरे मिली है। यही एक मात्र ऐसा सैन्धव स्थल है जो दुर्गीकृत नहीं है।
- लोथल : यह नगर गुजरात में खम्भात की खाड़ी में भोगवा नदी के किनारे स्तिथ है। जो महत्वपूर्ण सैन्धव स्थल तथा बंदरगाह नगर भी था। यहाँ से गोदी (Duckyard )के साक्ष्य मिले है लोथल में नगर का दो भागो में विभाजन होकर एक ही रक्षा प्राचीर से पूरे नगर को दुर्गीकृत किया गया है।
- कालीबंगा : कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ होता है काली रंग की चूड़ियां। यह सैन्धव नगर राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी के किनारे स्तिथ है यहाँ के भवनों का निर्माण कच्ची ईंटो द्धारा हुआ था तथा यहाँ से अलंकृत ईंटो के साक्ष्य मिले है। जुते खेत, अग्निवेदिका, सेलखड़ी तथा मिटटी की मुहरे एवम मृदभांड यहाँ उत्त्खनन से प्राप्त हुए है।
- सुत्कागेंडोर : सैन्धव सभ्यता का यह सुदूर पश्चिमी स्थल पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में स्तिथ है।यह सैन्धव सभ्यता का पश्चिम में अंतिम बिंदु है। यहाँ से एक किले का साक्ष्य मिला है, जिसके चारो ओर रक्षा प्राचीर निर्मित थी।
- बनावली : हरियाणा के हिसार जिले में स्तिथ इस स्थल से कालीबंगा की तरह हड़प्पा पूर्व और हड़प्पाकालीन, दोनों संस्कृतियों के अवशेष मिले है। यहाँ से अग्निवेदिया, लाजवर्दमनी, मनके, हल की आकृति, तिल सरसो का ढेर, अच्छे किस्म के जो, नालियों की विशिस्टता, तांबे के वाणाग्र आदि मिले है।
सिंधु घाटी सभ्यता का सामाजिक जीवन
पुराविदों द्वारा की गई खुदाई में मिले अवशेषों में भारी मात्रा में नारी मृण्मूर्तियां मिली थी जिससे हम इस सभ्यता को मातृसत्तात्मक प्रधान कहे तो गलत नहीं होगा। कई जगहों पर इस सभ्यता में गेहूँ एवं जौ के अवशेष भी प्राप्त हुवे थे, जिससे यह ज्ञात होता है की इनका मुख्य भोजन गेहूँ एवं जौ थे। खुदाई में रोटी बनाने के साँचे भी मिले हैं , जिनसे उनके मिष्ठान प्रयोग की पुष्टि होती है ।
सिंधु सभ्यता के लोग पशुपालन का कार्य भी करते थे, हङप्पा स्थलों से मिली जानवरों की हड्डीयों में मवेशियों , भेङ , बकरी , भैंस , तथा सूअर की हड्डीयाँ शामिल थी । ये सभी जानवर पालतू थे । जंगली प्रजातीयों जैसे सूअर, हिरण और घङियाल की हड्डीयाँ मिली हैं। मछली एवं पक्षियों की भी हड्डीयाँ मिली हैं। इससे यह ज्ञात है की यहाँ के लोग माँसाहार का भी प्रयोग करते थे।
इस सभ्यता के लोग सामान्यतः सूती एवं ऊनि वस्त्रो का प्रयोग करते थे, एवं स्त्री और पुरुष दोनों ही आमतौर पर गहनों का प्रयोग किया करते थे। प्राप्त उत्खनन में ताम्बे का शीशा भी मिला था, जिससे पता लगता है की श्रृंगार की सामंग्री भी यहाँ पर उपयोग में ली जाती थी। खुदाई में लकड़ी के खिलौने भी मिले थे, इसलिए बच्चो के मनोरंजन के साधन भी उपलब्ध थे इनके पास। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग कुल्हाङी, बरछी, गोफन, चोब नामक आदि हथियारों का प्रयोग अपनी रक्षा करने में करते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता की कला
कई शताब्दियों पहले भी सिंधु सभ्यता के लोग बहुत सी कलाओं में निपूर्ण थे। यहाँ मूल रूप से तो पत्थरो के औजार और उपकरण उपयोग में लिए जाते थे, किन्तु यहाँ के वासी धातु के उपयोग से भी भली भाँति परिचित थे, उदाहरण के लिए उत्खनन में प्राप्त काँसे की मूर्तियां और बर्तनों का प्राप्त होना है। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में लगभग 2500 मुहरे प्राप्त हुई थी, जिनका आकार आयताकार एवं वर्गाकार दोनों था। इतिहासकारों के मतानुसार यह मुहरे हाथी दाँत से बनी होती थी, जिनका उपयोग व्यापार में लेन-देन के लिए रुपयों जैसे किया जाता था।
हड़प्पा सभ्यता के लोग गोमेद, फिरोजा, लाल पत्थर और सेलखड़ी जैसे बहुमूल्य एवं अर्द्ध कीमती पत्थरों से बने अति सुन्दर मनके का प्रयोग आभूषणो के लिए उपयोग करते थे, कई जगह तो सोने में जड़ित मनके भी मिले है। कई जगह तो चांदी की थालिया भी प्राप्त हुई है। सिंधु सभ्यता में मिट्टी से बने बर्तन और मूर्तियाँ भी बहुतायत में प्राप्त हुई थी, इससे ज्ञान होता है की यहाँ के कारीगर उत्तम किस्म के जानकार थे।
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सिंधु सभ्यता का धार्मिक स्वरुप
जब पुरातन विभाग ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो में उत्खनन किया तो उनको अनेको देवियॉँ मूर्तियाँ प्राप्त हुई थी, यह सभी मूर्तियाँ पकी हुई मिट्टी से बनी हुई थी। जानकारों के अनुसार यह सभी मूर्तियाँ मात्र शक्ति से सम्बंधित रखती है, क्योकि प्राचीन काल से ही भारतवर्ष में मात्र एवं प्रकृति देवी की पूजा हम कर रहे है, और वर्तमान में भी हम मात्र देवी की पूजा करते है। हड़प्पा में मिली एक स्त्री की मूर्ति के गर्भ से पौधा निकलता हुवा दर्शाया गया है, जैसे की पौधा जन्म ले रहा हो। शायद यह मूर्ति धरती देवी की है, और धरती से पेड़ उत्पन्न होने के दृश्य को दर्शाया गया है।
सिंधु घाटी सभ्यता में हुई अभी तक की किसी भी खुदाई में किसी भी तरह का देवालय प्राप्त नहीं हुवा है, यहाँ प्राप्त मिट्टी और पत्थर की मूर्तियाँ, मुहरे ही इसके धार्मिक जीवन का स्रोत है। सिंधु घाटी सभ्यता में हुई खुदाई में एक विशेष मूर्ति या सील पाया जाता है, जिसमे एक 4 मुख वाला योगी का चित्र बना हुवा है, ज्यादातर विद्वान् इसे शिव का चित्र मानते है, क्योकि वर्तमान मेवाड़ जो कभी सिंधु सभ्यता की सीमाओं में आता था वहाँ पर आज भी 4 मुख वाले शिव ( एकलिंग जी ) की पूजा होती है। लोथल, कालीबंगा आदि जगहों पर हवन कुंण्ड मिले है जो की उनके वैदिक होने का प्रमाण है। यहाँ स्वास्तिक के चित्र भी मिले है।
सिंधु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन
मुख्य रूप से सिंधु सभ्यता के लोग कृषि पर आश्रित थे, इसलिए सभी नगर ज्यादातर नदियों के मुहानो पर पाए गए है। लेकिन यहाँ व्यापर और पशुपालन भी बहुतायत में होता था।
सिंधु नदी में हर वर्ष बाढ़ आ जाती थी, इसलिए शहरो के मुहानो पर पक्की हुई ईंटो की दीवार बनाई जाती थी। जब बाढ़ उतर जाती थी तब सिंधु घाटी सभ्यता के लोग बीज रोपण कर देते थे, एवं अगले वर्ष बढ़ा आने से पहले ही फसल कटाई हो जाती थी। यहाँ प्राप्त मुहरे और प्रतिक चिन्ह दर्शाते है की यह लोग व्यापार के लिए इन वस्तुओं या प्रयोग किया करते थे।
इस सभ्यता के लोगों ने व्यापार और कृषि एवं परिवहन के उद्देश्य से ही नगरो की स्थापना नदियों के किनारे की गई थी, जिससे व्यापारिक उत्पाद सुगमता से एक स्थान से दुसरे स्थान पर भेजा जा सके। मिट्टी के बर्तन बनाने में ये लोग बहुत कुशल थे। मिट्टी के बर्तनों पर काले रंग से भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र बनाये जाते थे। कपड़ा बनाने का व्यवसाय उन्नत अवस्था में था। उसका विदेशों में भी निर्यात होता था। मोहनजोदड़ो से प्राप्त मेसोपोटामिया कि मुहरे एवं हड़प्पाई मुहरों के साक्ष्य का मेसोपोटामिया के नगरों से मिलना तात्कालिक द्विपक्षीय व्यापार कि पुष्टि करते हैं।
सिंधु सभ्यता की खुदाई में कई प्रकार के मनके भी प्राप्त हुवे थे, जिनसे यहाँ के लोग आभूषण और ताबीज बनाने का कार्य करते थे। यहां के लोग आपस में पत्थर, धातु शल्क (हड्डी) आदि का व्यापार करते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता समय निर्धारण
इस प्राचीन सभ्यता के काल को निर्धारित करना बहुत ही मुश्किल कार्य है, क्योकि अभी तक प्राप्त सभी अवशेषों का समय अलग-अलग प्राप्त हुवा है, फिर भी समय-समय पर विद्वानों ने इसके काल को निर्धारित किया था। सर्वप्रथम खुदाई में हड़प्पा संस्कृति का ज्ञान हुवा था। सिंधु घाटी सभ्यता के काल को मूल रूप से 4 भागों में बांटा गया है। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:-
पूर्व हड़प्पा
यह लगभग 7570-3300 ई. पू. तक पाई जाती थी। यह नवपाषाण युग,ताम्र पाषाण युग में पाई जाती थी। इस काल को प्रारंभिक खाद्य उत्पादक युग भी कहाँ जा सकता है। इसके प्रमुख क्षेत्र थे : भिरड़ाणा और मेहरगढ़।
प्रारम्भिक हड़प्पा
सिंधु घाटी सभ्यता का यह काल लगभग 3300-2600 ई. पू. आरंभिक कांस्य युग में पाया जाता था। इसे हम क्षेत्रीयकरण युग के नाम से भी जानते है। इसे भी दो चरणों में विभाजित किया जाता है, हड़प्पा 1st 3300-2800 ई. पू. और हड़प्पा 2nd हड़प्पा 2 (कोट डीजी भाग, नौशारों एक, मेहरगढ़ सात) 2800-2600 ई. पू. तक।
परिपक्व हड़प्पा
यह चरण लगभग 2600-1900 ई. पू. में मध्य कांस्य युग तक रहा है। इसे हम एकीकरण युग के नाम से भी विभाजित कर सकते है।
उत्तर हड़प्पा
इस नदी घाटी सभ्यता का यह चरण लगभग 1900-1300 ई. पू. में उत्तरी कांस्य युग तक रहा है। इस को हम प्रवास युग के नाम से भी विभाजित कर सकते है।
सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषता
- हड़प्पाई सभ्यता अपनी नगरीय योजना प्रणाली के लिये जानी जाती है।
- रेडियोकार्बन डेटिंग के आधार पर सिंधु घाटी सभ्यता का काल 2500-1750 ईसा पूर्व के आसपास निर्धारित किया गया है|
- सिंधु घाटी सभ्यता के लोग परिवहन के लिए बैलगाड़ियों का उपयोग किया करते थी, एवं नदियों के किनारे बसावट की वजह से यहाँ नौकायन का अविष्कार भी हो चूका था।
- सिंधु सभ्यता के लोग मात्र देवी की अराधना किया करते थे।
- हड़प्पा की सभ्यता का मुख्य भोजन जौ, गेहूँ, मांस एवं दूध था।
- सिंधु घाटी सभ्यता में हुई खुदाई में सैकड़ो मुहरे प्राप्त हुई थी, इन मुहरों में बहुत से चिन्ह अंकित होते थे, जो प्राय व्यापार करने के लिए रुपयों की तरह प्रयोग में ली जाती थी।
- सैंधव सभ्यता के लोगो का पहनावा मुख्य रूप से ऊनि एवं सूती वस्त्रो का था।
- सिंधु घाटी सभ्यता के नगरों का निर्माण मिट्टी की पकाई हुई ईंटो से किया जाता था।
- हड़प्पा में कई जगह पर खुदाई के दौरान मिट्टी एवं काँसे की मूर्तियाँ प्राप्त हुई थी, जिनसे पता लगता है की यहाँ के लोग कला में भी समृद्ध थे।
- यहाँ के लोग प्रकृति की पूजा में विश्वास रखते थे, एवं पीपल के वृक्ष को सबसे पवित्र मानते थे।
- सिंधु सभ्यता के नगरों में जल संचालन की बेहतरीन सुविधा मौजूद थी, पानी की निकासी के लिए शहरो में बड़ी-बड़ी नालियों का निर्माण करवाया गया था। घरो में भी बड़े स्नानागार बनवाये गए थे।
- कहते है की भारतवर्ष में वास्तुकला का प्रारम्भ सिंधु घाटी सभ्यता से हुवा था।
- सिंधु वासी लिखते समय चिड़िया, मछली,मानवकृति आदि का प्रयोग किया करते थे। सिंधु लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी।
- सिंधु घाटी के लोग अपने आभूषणों में सोना, चांदी, तांबा, धातु का प्रयोग करते थे साथ ही यह लोग कीमती पत्थर से बने आभूषणों को भी बहुत चाव से पहनते थे।
- हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता का नाम इसके प्रमुख नगर मोहनजोदड़ो की खुदाई के कारण मिला। क्योंकि मोहनजोदड़ो की खुदाई सिंधु नदी के किनारे हुई थी। इसी सिंधु नदी के कारण इसे सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाने लगा।
- प्राचीन मेसोपोटामिया की तरह यहां के लोगों ने भी लेखन कला का आविष्कार किया था। हड़प्पाई लिपि का पहला नमूना 1853 ईस्वी में मिला था और 1923 में पूरी लिपि प्रकाश में आई परन्तु अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
- यहाँ हुवे उत्खनन में कई मृदभांड मिले हैं, जिन पर नाग की आकृति दिखी है। इससे सिंधु घाटी सभ्यता में नाग की पूजा किये जाने का भी अनुमान लगाया गया है। राखीगढ़ी, लोथल, कालीबंगा और बनवाली में उत्खन्न के दौरान कई अग्निवेदियां प्राप्त हुई हैं, जिससे पता चलता है कि अग्नि पूजा उस काल में होती थी।
निष्कर्ष
हमें पूर्ण विश्वास है की आपको हमारा यह लेख सिंधु घाटी सभ्यता ( Indus Valley Civilization ) पसंद आई होगी। हमारा सदैव यही प्रयास रहता है की इस ब्लॉग अभिज्ञान दर्पण पर पाठको को इतिहास का अच्छा ज्ञान हो एवं इतिहास की विस्तृत जानकारी और उससे जुड़े रोचक तथ्यों को आपसे साझा करे।
सिंधु घाटी सभ्यता पर जानकारी तो बहुत विस्तृत है, और हमने यहाँ प्रयास भी किया है आपको सभी जरुरी जानकारी प्रदान कर सके। अगर आपको इस लेख से कुछ सिखने को मिला है, और आपका ज्ञान बढ़ा है तो कृपया हमारा प्रोत्साहन करने हेतु इस लेख को अपने मित्रों के साथ शेयर जरूर करे एवं इस लेख को आप Social Networks यानि facebook और twitter एवं WhatsApp पर अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे।
“ना फैलायेंगे कूड़ा-कचरा, स्वच्छ बनायेंगे भारत अपना”